Tilak Aur Agarkar (तिलक और आगरकर) – Vishram Bedekar (विश्राम बेडेकर / अनुवाद : सिंधू भिंगारकर)
स्वतंत्रता संग्राम के तेजस्वी सूर्य लोकमान्य बाल गंगाधर तिलकनी और सामाजिक क्रांति के अग्रदूत मा. गोपाल गणेश आगरकरजी के बारे में जितना भी लिखा जाए कम होगा। ‘रणांगण’ उपन्यास के रचयिता विश्राम बेडकरजी ने चित्रपट कथाओं के लिए इन दोनों के कार्यों का अनेक वर्षों तक गहन अध्ययन किया था। मराठी में नाटक लिखने के लिए उन्होंने दोनों के जीवन का एक सूत्र पकड़ा, वह सूत्र है- लोकमान्य तिलकती और आगरकरनी की जानी-मानी दोस्ती हार्दिक मित्रता और मतभेदों के कारण दोनों में संघर्ष सूत्र यह केवल एक ही सूत्र पकड़कर समूचा नाटक बड़ा ही मर्मस्पर्शी बन पड़ा है। प्रस्तावना में स्वयं नाटककार विश्राम बेडेकरजी ने लिखा है कि तितक और आगरकर दोनों ही इस नाटक के नायक है। दोनों की मित्रता के साथ-साथ मत-भिन्नता और उसके कारण उत्पन्न तीव्र संघर्ष का चित्रण करना नाटक का मुख्य उद्देश्य है।
नाटककार बेडेकरजी ने सौ साल पहले का सामाजिक चित्रण बड़ी कुशलता से दिर्शित किया है। उनकी प्रतिभा की बरसों की तपस्या इस नाटक के द्वारा सुफलित हुई है।
इस नाटक का हिंदी अनुवाद किया है सिंधू भिगारकरजी ने पुणे विश्वविद्यालय में आमंत्रित रीडर के रूप में अध्यापन करते-करते उन्होंने अनुवाद का काम शुरू किया। हिंदी में आजीवन कार्य करने के लिए उन्हें अनेक सम्मान प्राप्म हुए हैं। प्रस्तुत मराठी नाटक का हिंदी अनुवाद भी मराठी भाषा के लिए सम्मान ही है।
ISBN: 81-7185-755-8
Number of pages: 156
Language: Hindi
Cover: Paperback
Year of Publication: 2003